Monday 21 February 2011

सिर्फ तुम्हारे लिए


लफ्जों
से होती नहीं बयां तुम, क्या तुम कोई हया हो ?

कहकशा हो मेरी या मुझ पे चढ़ा कोई नशा हो ?

लिपट गई जो मन से मेरे, तुम वो दबीज़ रिदा हो !

आँखों के सामने हो मेरे, फिर भी क्यों मुझसे जुदा हो ?

छोड़ क्यों नहीं देती मुझे, क्या तुम मेरी छाया हो ?

या कर गई मुझपे जादू , ऐसी कोई माया हो ?

सुबांह में खिलते गुलो की महक या डाली पर नाचती चिडियों की चहक हो ?

तुम्हे देख क्यों हुआ ऐसा हश्र मेरा,

क्या तुम कभी ख़त्म होने वाली मेरी ग़ज़ल हो ?

तार तार कर गई मुझे, फिर भी तुम मेरे अक्स से जुडी हो !

रोम रोम सितार बजाये, सितारों से ही तुम जड़ी हो !

मेरे नूर में बस चुकी हो तुम, तुम ही मेरे लिए कारून हो !

मेरे प्यार का दायरा कोई ? तुम ही मेरी सायरा हो !

लफ्जों से होती नहीं बयां तुम, क्या तुम कोई हया हो ?

कहकशा हो मेरी या मुझपे चढ़ा कोई नशा हो ?

{this was my first romentic gazal and so close too me, and this is first publish of this gazal, before this day i had never explored it from anyone. this was written to show the way of love for someone's first crush ever..............}

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